बहुनामी शिव
साखी
कर त्रिशूल शशी शीश, गल मुंडन की माला
कंठ हला हल विष भर्यो, बॆठे जा के हिमाला..
त्रि नेत्र सर्प कंठ, त्रिपुंड भाल सोहाय,
संग गिरिजा जटा गंग, सब जन लागे पाय...
शिव शंकर सुख कारी, भोले..
महा देव सोमेश्वर शंभु, विश्वेश्वर विष धारी..भोले...
गिरि कैलासे गिरिजा के संग, शोभे शिव त्रिप्य्रारी
डम डम डम डम डमरु बाजे, भूत पिशाच से यारी.....
गंगा गहेना शिर पर पहेना, भुजंग भूषण भारी
बांको सोहे सोम शूलपाणि, भस्म लगावत भारी....
वाघंबर का जामा पहेना, लोचन भाल लगारी
वृषभ वाहन विश्वनाथ का, भूमि समशान विहारी...
मुख मंडल तेरा मन ललचावे, छब लागत हे न्यारी
मृत्युंजय प्रभु मुजे बनादो, बैठे जो मृग चर्म धारी...
चरन धुलका प्यासा पिनाक में, भूतेश भक्त हित कारी
दास "केदार" केदार नाथ तुं, बैजनाथ बलिहारी...
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