૧૫૮, मेरे गोपाल आये हैं.
૨૭.૯.૨૫.
सजालो अपने गुलशन को, मथुरा में श्याम आये हैं।
जगत उद्धार करने को, मेरे गोपाल आये हैं.....
मामाकी केदमें प्रगटे, रक्षसके ध्यान से छटके,
दीखाये बिरजमें लटके, गोपीयनके प्रान आये हें...
माखनकी मटुकीयां फोडी, खूंटी से गो बाला छोडी,
ग्वालोंकी छा गई टोली, ये माखन चोर आये हें...
दैत्यको मोक्ष दिलवाया, ईन्द्रको बल भी दीखलाया,
गोवर्धन ढाल बनवाया, गिरिधर लाल आये हें
कंसको मारकर मोहन, मुक्त पित्रु मात करवाया,
स्वर्ण नगरीको बनवाया, द्वारिका नाथ आये हें.
"केदार"की एक ही अरजी, ह्रिदयमें राखीयो हरजी
निरंतर नामकी माला, येही बस आश लाये हें...
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