૧૫૭, માધવકી મેહર
૧૬.૯.૨૫
ઢાળ:-ફિલ્મી ગીત..નગરી નગરી દ્વારે દ્વારે...જેવો
मेहर करी माधवने मुझ पर, मुख में राम रस आया रे
सुर लगा जब श्याम सुंदर से, शब्द ज़ुबां पर आया रे
मन मन्दिरमे बैठके मोहन, मुरली ऐसी बजाई रे
गूंज उठा हरि नाम अंतर में, छबि माधव मन भाई रे
ठुमक ठुमक मन नाचन लागा, शब्द फूट फूट कर आया रे
समज न आया राग भैरवी, मालकौंस दरबारी रे
ताल त्रिताल ना हिंच कहेरवा, ना कोई तान लगाई रे
फिरभी कृपा कृपालकी बन गई, भजन ग्रन्थ बन पाया रे
दीन "केदार" की एक ही अरजी, भक्तको भूल ना जाना रे
रहे निरंतर नाम जुबापे, राम भजन धुन गाना रे
अंतर मन में दरश आपका, हरदम आके दिलाना रे
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